नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥ एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥ भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।। अर्थ- हे प्रभु जब क्षीर सागर के मंथन में विष से भरा घड़ा निकला तो समस्त देवता व दैत्य भय से https://shivchalisas.com